Saturday, October 11, 2014

ये उन सक्यूलरों के लिए जिनहे दिवाली पर पठाकों से समस्या है।

ये उन सक्यूलरों के लिए जिनहे दिवाली पर पठाकों से समस्या है। 


दिवाली नजदीक है। ओर सेक्युलर भाइयों मे ये मुद्दा ज़ोर मार राहा है के दिवाली पर पठाके क्यूँ ?  क्यूँ पोल्यूशन फेलाएँ? क्यूँ ECO System बिगाड़ें?

तो खास उन भाइयों के लिए की पठाकों का इतना नुकसान नहीं जितना गाड़ी Drive करने से होता है। 1 किलोमीटर गाड़ी चालाने से जितना पोल्यूशन होता है उतना तो 30 दिवालियाँ मनाने से भी नहीं होता।
यदि पठाके सच मुच कोई issue होते तो जापान (most eco conscious country) कई साल पहले ही अपने उत्सवों पर पठाके जलाना छोड़ देता।  और क्यों नहीं अमेरिका New Year पर पठाके जलाना छोड़ देता

ज़रा होश करो...........

1। जिन्हें अभी भी लगता है के दीवाली मे (पठाके) issue है।
2जिन्हें अभी भी लगता है के हिन्दू विवाह मे (दहेज) issue है।
3जिन्हें अभी भी लगता है के हिन्दू संस्कारों मे (बाल-विवाह) issue है।


तो वो लोग ये भी पढ़ें:-

1 पठाके ओर गोला-बारी माहाराज विक्रमादित्य के जमाने से भारत मे प्रचलित है। (हयून सांग ने भी अपनी पुस्तक मे इसका ज़िक्र किया है) भारत मे बहुत पहले ही तोप के गोले, बारूदी राकेट, गूल्छर्रे बम आदि मशहूर थे। इसका प्रमाण रोमन ओर चाइनीज़ इतिहासकारों की पुस्तकों मे मिलते है।
यहाँ तक की मेने ब्रह्मवैवर्त पुराण मे भी इनका ज़िक्र पढ़ा है।  जेसे तोप (शतघ्नी) बंदूक (भुशुंडि) आदि संस्कृत नामो से मशहूर थे।

और मे सच कह राहा हूँ अभी तो दिवाली के पठाकों को बंद कराने की बात चल रही है लेकिन मे आपको ढिखाऊँगा (इन अमेरिकन फंडिड NGOs की वजह से) जब दिवाली के पठाके बंद हो जाएँगे फिर देशहेरा के पठाके भी बंद करवाए जाएँगे। ओर जल्द ही "तीज" (झूलों का त्योहार) की तरह हम अपने दो खास (दिवाली, दशहरा) त्योहारों से भी हाथ धो चुके होंगे।

लेकिन गाये ओर बकरे ईदों पर एसे ही कटते रहेंगे ओर प्राकृतिक ECO System  पतन के गर्त मे पहुँच चुका होगा।

2 "दहेज" नाम का कोई भी शब्द हिन्दू, जैनों, बोद्धों, सिखों के               वेदों, पुरानों, जातकों, ग्रन्थों आदि मे कहीं भी नहीं है।  दहेज और मेहर  दोनों उर्दू के शब्द है ओर केवल मुस्लिम किताबों मे ही लिखे गए है,

दहेज (जो लड्की वाले लड़के वालों को देते हैं (लड़का Purchase करने के लिए)
ओर
मेहर लड़के वाले देते हैं लड़कीवालों को (लड़की Purchase करने के लिए।)

  हाँ वेदों मे दान शब्द का प्रयोग हुआ है जैसे कन्या दान।

(आप खुद सोचो के पिता की संपत्ति पर तो पुत्र का हक है तो फिर पुत्री को पिता की संपत्ति मे से क्या मिला बाबा जी का ठुल्लू।)

इसलिए वेदों मे ये व्यवस्था ब्रह्मा जी ने की  है की पिता की चर-अचर संपत्ति पर पुत्र का  अधिकार और  पिता द्वारा (भाई-ताया-चाचा-मामा आदि द्वारा) दिये गए सामान-धन-कपड़े-जेवर आदि पर पुत्री का अधिकार होता है।

हमारे यहाँ गाँव मे आज भी भाई बहन के घर बिना कुछ दिये नहीं लोटता।

इस लिए कन्या दान के समय, तीज त्योहार के समय दिये गए समान-द्रव्य-कपड़े-लत्ते आदि पर पुत्री का अधिकार होता है।  ना के ये कोई दहेज प्रथा है।

4। सब बाल विवाह.... बाल विवाह करते रहते। कोई ये क्यूँ नहीं कहता की मोहम्मद ने कुरान मे 6 ओर 9 साल की बच्चियों से शादी करने का हुकम दे रेखा है।  ओर मुसलमानों मे ये जायज कानून है।  सब बाल विवाह तो बोलते है लेकिन गौने नाम की हिन्दू प्रथा का कोई ज़िक्र नहीं करता।  हमारे यहाँ हिंदुओं मे (खास कर UP बिहार) बाल विवाह का मतलब है की बचपन मे शादी करेके जवानी मे गौना करना।  मतलब शादी तो बचपन मे ही होगी लेकिन बच्ची पति के घर बड़ी होकर गौना प्रथा मे ही जाएगी। (ओर ये कोई ज़रूरी भी नहीं के हर परिवार को बाल-विवाह करना ही है।) अगर छोटी उम्र मे ही कोई अच्छा खानदान ओर लड़का मिल गया है तो आप शादी पहले करके गौने के समय बेटी को पति के घर भेजो बस इतना ही)

 इस प्रथा के कई फायदे है।  जिनमे से मुख्य तो ये है की।

1। लड़के ओर लड़की वालों को ये टेंशन नहीं रहती की उन्हे वर वधू की तलाश करनी है

2। दूसरी वर वधू को बचपन मे ही ये बता दिया गया होता है की उनकी शादी हो चुकी है।  इस लिए वो कहीं ओर मुह नहीं मारते बल्कि अपने पति/पत्नी को ही सपनों मे देखते ओर सोचते है।

वास्तविकता तो ये है की ये प्रथा बिगड़ी ही तब जब भारत मे मुस्लिम राजाओं ने आक्रमण किया।  क्योंकि वो हिन्दू लड़कियों को (उनका चेहरा देखकर) उठा कर ले जाते थे (जो भी उन्हे अच्छी लगती थी।इसलिए उन मुसलमानो के भय से घूघण्ट प्रथा आई।  

माँ-बाप डर के मारे बचपन मे ही गौना करने लगे क्यों की गौने के बाद बच्ची को संभालने की ज़िम्मेदारी लड़के वालों पे हो जाती।  

अंग्रेजों के जमाने मे बने उल्टे सीधे क़ानूनों की वजह से इस प्रथा को ओर नुकसान हुआ। 

 ओर कांग्रेस ने तो भट्टा ही बैठा दिया।

दोस्तों मेरी आपसे प्रार्थना है के बिना सोचे समझे अपनी हिन्दू प्रथाओं पर प्रहार मत करो।  और खुल के दिवाली बनाओ ओर खुश रहो। 

जय हिन्द।  

Written by: Yogeshwar Sharma

No comments:

Post a Comment